मेरा नाम योगेन्द्र पाल है, मैं आगरा का रहने वाला हूँ| मेरा गाँव "खुरतनिया" मैनपुरी-किसनी रोड पर पड़ता है| मेरे पापा जी जल निगम में इंजिनियर हैं और उन्होंने इंजीनियरिंग १९८१-८२ में की थी| मेरे बाबा जी गाँव के रहने वाले ही थे और कभी भी शहर नहीं गए थे, इस के बाबजूद भी उन्होंने पापा जी को अच्छी शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसका नतीजा यह है कि आज हमारे घर में २ इंजिनियर है (मैं और पापा जी ) और ३ इंजिनियर आने वाले हैं (मेरा भाई और दोनों बहने इंजीनियरिंग कर रहीं हैं)| पापा जी बताते हैं कि उस समय गाँव वाले पढाई को बहुत महत्व देते थे और सभी ने अपने अपने बच्चों को पढ़ने की पूरी कोशिश की थी. अध्यापक भी पढ़ाने में काफी रूचि लेते थे और समय समय पर विद्यार्थियों के घर पर आते रहते थे|
कई साल बीत गए हैं और अब २०१० दस्तक दे रहा है| मैं अक्सर अपने गाँव जाता रहता हूँ और गाँव में कही भी शिक्षा को नहीं पता. अब तो मेरे गाँव में स्कूल भी है ५ वीं कक्षा तक, उसके बाद भी कोई अपने बच्चों को पढने नहीं भेजता, हाँ, पंजीरी और चावल लेने के लिए भेजना नहीं भूलते| किताबों में रुपये खर्च करना उनको रुपये की बर्बादी लगता है, मुझे लगता ही नहीं कि ये वही गाँव है जहाँ से मेरे पापा और उनके कई मित्र उस समय इंजिनियर बन कर निकले थे जब शायद वो इंजिनियर शब्द का मतलब भी नहीं जानते होंगे और स्कूल जाने के लिए जंगल को पार कर के ३ कोस (९ किलोमीटर) पैदल चल कर जाना पड़ता था|
इस बदलाब का कारन जानने का प्रयत्न कर रहा हूँ| जान पाया तो आगे लिखूंगा....
यदि आप समझते हैं तो आप भी लिखिए
वैसे में शिक्षा के प्रति जागरूकता फ़ैलाने का प्रयत्न और शिक्षा के सरल तरीकों की खोज में लगा हूँ जिससे कि उन जगहों पर भी अच्छी शिक्षा प्रदान की जा सके जहाँ पर अच्छे अध्यापक नहीं है. मैं यह प्रयाश एक छोटी फर्म जिसका नाम Learn By Watch है, के साथ मिल कर रहा हूँ| मेरे प्रयाशों को आप देख सकते हैं इस लिंक पर
http://www.youtube.com/watch?v=T6dWsov9bLI
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