कुछ समय पहले मेरे पास एक ई-मेल आया जिसमे एक छात्र ने मुझसे पूछा की वो सी प्रोग्रामिंग लॅंग्वेज को कितने दिनों मे सीख सकता है? वो जल्दी से जल्दी सीखना चाहता है क्यूंकी उसके पेपर सिर पर आ चुके हैं|
इस सवाल का जबाब देना आसान नही है, (बिना दिल दुखाए) फिर भी मैं इस लेख मे इस सवाल का जबाब दे रहा हूँ, उम्मीद है अधिकतर छात्रों को समझ मे आएगा|
पहली बात: आप को जल्दी क्यूँ है? पेपर सिर पर आ गये हैं, इसलिए? या फेल होने का डर है, इसलिए?
तो पहले मुझे एक बात बताइए कि आप पढ़ क्यूँ रहे हैं? पेपर मे पास होने के लिए या फिर अपना करियर बनाने के लिए? अगर सिर्फ़ पेपर मे पास ही होना है तो फिर इतनी चिंता करने की ज़रूरत नही है, उसके लिए मे आपको सबसे अच्छा तरीका बताता हूँ, कुछ मत कीजिए, कुछ भी नही, सेमेस्टर स्टार्ट होने से लेकर पेपर स्टार्ट होने के ३० दिन पहले तक कुछ भी मत कीजिए (पढ़ाई मे), खूब खेलिए, फिल्म देखिए, मस्ती कीजिए, और पेपर स्टार्ट होने मे जब ३० दिन रह जाए तो पिछले १० सालों मे आए हुए सभी सब्जेक्ट्स के सभी पेपर निकाल लीजिए और हर प्रश्न को उत्तर सहित घोल कर पी जाइए, घोल कर पीने का मतलब तो समझते ही होंगे? रट लीजिए जैसे तोता रट्ता है कुछ भी समझने की ज़रूरत नही है, आख़िर पास ही तो होना है, कितने नंबर चाहिए सिर्फ़ ३०, १०० में से और १५, ५० में से, है ना? यह तरकीब काफ़ी बढ़िया है, कभी कभी आप ५० से ज़्यादा नंबर भी ला सकते हैं| और आप देखेंगे की जो लोग रोज क्लास मे आते हैं उनसे भी ज़्यादा नंबर आप ला रहे हैं| याद रखिए की सिर्फ़ एक्सटर्नल मे, इंटर्नल मे यह तरकीब काम नही करती| इंटर्नल के लिए मे फिर कभी विस्तार से बताऊँगा, अभी इसी से काम चलाइए और इस ब्लॉग को सबस्क्राइब कर लीजिए जिससे आगे जो भी टिप मे दूं वो आप कहीं खो ना दें|
अब बात करता हूँ, सीखने की, किसके लिए? पेपर के लिए? नहीं पेपर के लिए भी और करियर के लिए भी, यह एक तपस्या है जो आपको ऐसा फल देगी जिससे आपको मज़ा आ जाएगा और अगर आप पूरी तरह से इस पर अमल कर पाए तो आप कॉलेज लाइफ भी एंजाय करेंगे, और करियर भी अच्छा बनेगा|
तो हम स्टार्ट करते हैं एक मिशन, क्या मिशन है? आपको सीखना है, करियर के लिए और अच्छे नंबर भी लाने हैं किसके लिए? सिर्फ़ करियर के लिए नहीं कॉन्फिडेन्स बढ़ाने के लिए भी, कॉन्फिडेन्स बढ़ने से क्या होगा? कॉन्फिडेन्स बढ़ने से आप लकी हो जाएँगे जी हाँ, कॉन्फिडेन्स बढ़ने से लकी होते हैं, भगवान को सुपारी देने से नही, की आज सुपारी दे दी कि प्रभु पेपर अच्छा करा देना तो ५० रुपये का प्रसाद चढ़ाऊँगा, ये सुपारी है, इससे आप लकी नही होंगे, लकी होते हैं कॉन्फिडेन्स से, जितना ज़्यादा अच्छा आपका कॉन्फिडेन्स होगा उतना ही अच्छा काम आप कर पाएँगे, बिना डरे, और जिस काम को बिना डरे किया जाए उसमे सफलता के मौके कई गुना बढ़ जाते हैं.
अब आते हैं मुद्दे की बात पर, क्या मुद्दा है? पढ़ा कैसे जाए जिससे कॉलेज की लाइफ भी मज़े से गुज़री जा सके और करियर मे भी चार चाँद लग जायें. पहले तो डिसाइड कीजिए की क्या पढ़ना है? जो सब्जेक्ट आप को पढ़ना है उस सब्जेक्ट का सिलबस देखिए, टाइम देखिए की कितना समय है आपके पास उस सब्जेक्ट को समझने के लिए, याद रखिए आपको समझना है पढ़ना नही है. समझने का मतलब है गहराई मे जानकारी होना, ज़्यादा जानकारी होना नहीं. ज़्यादा जानकारी तो किताबों मे है ही उसको दिमाग़ मे रखने से क्या होने बाला है? आपको उस जानकारी को इस्तेमाल करना आना चाहिए, तो आपको किसी भी सब्जेक्ट की जानकारी गहराई मे होनी चाहिए, गहराई मे कैसे होगी? उसका उदाहरण अपने जीवन मे लेकर, मतलब आपने कुछ पढ़ा उसको तुरंत ही प्रोसेस कीजिए की जो भी आपने पढ़ा है उसको कहाँ पर इस्तेमाल कर सकते हैं, जाहिर सी बात है की उस समय आपको पता ही नही लगेगा की उसको कहाँ पर इस्तेमाल कर सकते हैं, इस काम के लिए ही टीचर नामक प्राणी का जन्म हुआ है, अपने टीचर से पूछिए की कहाँ पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है? एक बार आपके दिमाग़ ने पता लगा लिया की जो आपने पढ़ा है उसका संबंध वास्तविक जीवन से कहाँ है तो वो उसको भूलने बाला नही है, आप भूल भी गये तो दिमाग़ ज़रूरत आने पर अपना काम कर देगा, आपको याद दिलाने का. तो आपने एक बात अभी तक समझी कि जो पढ़ा उसको तुरंत ही कहीं ना कहीं पर लिंक कर दो रियल लाइफ से, हो गया काम ,हो गया याद. अब दुबारा फिर से पढ़ना नही पड़ेगा. क्यूंकी अब आप समझ चुके हैं, आपके दिमाग़ ने उसको स्वीकार कर लिया है, उसको याद रखने के लिए बिशेष मेहनत करने की ज़रूरत नही है. जो चीज़ हमारा दिमाग़ स्वीकार कर लेता है उसको भूलता नही है जैसे आपके दिमाग़ ने ये स्वीकार कर लिया है की अ-आ-ई-ई भी कुछ होता है जिसके बिना आपका काम नही चलता तो आज तक आप उसको भूले नहीं हैं, और अगर उनका ऑर्डर भूल भी गये हैं तो भी उनका इस्तेमाल नही भूले.
दूसरी बात जो आपको समझनी चाहिए वो यह है की टीचर का काम सिर्फ़ किताब मे लिखे हुए को पढ़ना नही होता, उसका काम उस लिखे हुए के सार को स्टूडेंट को समझाना होता है. ये जो समझने-समझाने का संबंध होता है ये ठीक वैसा ही है जैसा ताली बजाने का, जब दो हाथ मिलेंगे तभी ताली बजेगी, ठीक वैसे ही जब स्टूडेंट अपना दिमाग़ खुला रखेगा तभी वह टीचर की बात को समझ सकता है और तभी संबंधित प्रश्न पूछ सकता है, और किसी बात को समझ सकता है. यदि पढ़ते समय आप ३-ईडियट्स मे खो गये, या किसी को गुलाब देने लग गये तो आप टीचर को यह दिखाने के लिए की आप भी क्लास मे ही है, उल्टे सीधे सबाल पूछेंगे और टीचर को और बाकी लोगो को परेशान करेंगे. यदि आप टीचर से तर्क-वितर्क कर लेते है, क्लास मे होते हुए ही तो जब क्लास ख़त्म होगी तब तक आप कम से एक टॉपिक को अच्छी तरह से समझ चुके हैं और अब आपको उसको समझने के लिए ना तो लिखना है, ना ही दुबारा पढ़ना है सिर्फ़ एक बार दोहरा भर लेना है और आपका कीमती समय बचेगा जिसे आप अब किसी को गुलाब देने मे या फिर ३-ईडियट्स मे लगा सकते है बिना पढ़ाई मे नुकसान के.
तो कुल मिला कर आपने अभी तक दो बातें सीखीं, पहली उदाहरण के साथ समझिए और दूसरी क्लास मे पूरे ध्यान के साथ सीखिए.
अब आते हैं, आख़िरी बात पर आपने आज पूरे दिन मे जो कुछ भी सीखा है शाम को सोते समय उस को एक बार दिमाग़ मे दोहरा लीजिए, याद रखिए की दोहराते समय कुछ भी रहना नही चाहिए आपने क्या सीखा? क्यूँ सीखा, जो सीखा गया उससे जुड़े हुए किस उदाहरण के बारे मे आज आपने सीखा टीचर से क्या पूछा, उन्होने क्या पढ़ाया, कैसे पढ़ाया, दूसरे स्टूडेंट ने क्या सबाल पूछा था वग़ैरह-वग़ैरह| पूरी दिन की रील आपके दिमाग़ मे ठीक वैसे घूमनी चाहिए जैसे आपके सामने सब कुछ दुबारा हो रहा है.
हो गया मिशन कंप्लीट, इसमे अभी कुछ कुछ बातें और है जो जोड़ी जाएँगी और उनके बारे में मैं धीरे धीरे इस ब्लॉग में बताता रहूँगा. आप सिर्फ़ यहाँ पर सबस्क्राइब कीजिए जिससे आप कुछ भी मिस ना करें.
योगेंद्र पाल
yogendra.pal3@gmail.com
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योगेन्द्र जी, आपकी लेखनी में प्रवाह है, अच्छा लगा पढ कर।
जवाब देंहटाएंसाइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन का आमंत्रण आपको भेजा गया है। उसे स्वीकार कर लें। आप जो भी लेख लिखें, उसे सिर्फ ड्राफट रूप में ही सेव करें, मॉडरेटर द्वारा उसे उचित समय पर प्रकाशित कर दिया जाएगा।
बढ़िया, विद्यार्थियों के लिए काम का लेख. इसे सुरक्षित रख लिया है ताकि संदर्भ में बताया जा सके.
जवाब देंहटाएंvah keya baat hai
जवाब देंहटाएंआप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
joint my follower
मै बीसीए का छात्र हुँ... मै माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय का कोर्स कर रहा हुं..। सर धन्यवाद.. पढ़ने की तरीका बताने के लिए । सर मेरे को एक चीज समझ नही आता कि जब हम एक ही विषय के सारा चैप्टर को दिन भर तो पढ़ लेता हुँ समझ लेता हुं. याद कर लेता हुँ लेकिन धीरे धीरे बहुत प्रश्न उत्तर याद कर लेने के बाद भुलने जैसा लगता है...ऐसा लगता है कि दिमाग में इतना सारा भर गया कि सम्भालना मुश्किल हो जाता है बार-बार नोटस को रिवाईस करने का प्रयास करता हुँ
जवाब देंहटाएंजब मै परीक्षा में बैठता हुं काफी सोच सोचकर लिखना पड़ता है इसी के चक्कर समय निकल जाता है इसी कारण में सेमेस्टर में बैक आता है या नम्बर कम मिलते है.. निर्धारित समय में पूरा नही लिख पता हुँ या आधा उत्तर मजबूरी में छोड़कर आगे बढ़कर लिखना होता है ..
यही कमी के कारण लिखने की गति धीमी हो जाती है। कालेज में बहुत सारा लिखना पड़ता है.. मेरे दिमाग जल्दी शब्द नही उभरते । समय लेता है ..दिमाग में जो भी याद आये उसी को लिखना पड़ता है ।चाहे ऊपर नीचे हो जाए.. बस प्रोग्रामिंग लैग्वेज और इंग्लिश में अच्छे मार्क आये है लेकिन थ्यौरी पेपर में 100 में 40, 43 45 अंक मिले है हर प्रश्न 10 या 20 अंक का होता है । क्या स्कुल और कालेज की परीक्षा और पढ़ने का तरीका भी अलग- अलग होता है ।
सर कालेज की पढ़ाई कैसी करनी चाहिए परीक्षा कैसा देना चाहिए। इसका तकनीकी बताईये।