10 जनवरी 2013

पिछले 10 दिनों की मेरी सभी पोस्ट

आप कहेंगे कि यहाँ लिखने की क्या जरूरत थी सभी पोस्ट तो ब्लॉग पर दिख ही रहीं हैं। आपकी बात अपनी जगह पर सही है पर अब मैं सिर्फ एक जगह पर नहीं लिखता बल्कि कई जगह पर लिखता हूँ इसलिए अपनी इस ब्लॉग पोस्ट में आपके लिए लाया हूँ सभी पोस्ट के लिंक।

1 जनवरी को मैंने लिखा शिक्षकों के लिए खास वेब २.० तथा शिक्षक नाम से एक लेख जिसमे बताया कि वेब २.० क्या है और शिक्षक पढाने के लिए कैसे इसका प्रयोग कर सकते हैं।

2 जनवरी को लिखा कि कैसे आप एक ऑब्जेक्ट को इन्क्स्केप से ट्रेस कर सकते हैं, यूँ तो यह विद्यार्थियों के लिए लिखा है पर किसी को भी इसकी आवश्यकता पड़ सकती है और वैसे भी इन्क्स्केप एक ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है तो क्यूँ न इसे आजमा ही लिया जाए।

3 जनवरी को मैंने लिखा कि यदि वेब २.० का प्रयोग करते हुए अध्यापक के लिए एक वेबसाइट बनानी हो तो उसमे क्या-क्या होना चाहिए।

4 जनवरी को मैंने लिखा शिक्षा प्रौद्यौगिकी के बारे में, यह आपको जरूर पढ़ना चाहिए।

5 जनवरी को मैंने आपको बताया एक खास वेब सर्विस के बारे में जो आप सभी के बहुत काम की है। इसका नाम है NINITE, यह आपके सिस्टम में सॉफ्टवेयर को अपडेट करने तथा इंस्टाल करने का काम करता है।

6 जनवरी को आपके लिए लाया एक खास पोस्टर BILINGUAL EDUCATION (द्विभाषी शिक्षा प्रणाली) के बारे में, जिसे आप अपने स्कूल, कोचिंग सेंटर अथवा कॉलेज में लगा सकते हैं।

10 जनवरी को आपके लिए लिखा कैसी होंगी भविष्य की रेलगाडियाँ, देखिये आप भौंचक रह जायेंगे।

06 जनवरी 2013

Bilingual Education (द्विभाषी शिक्षा प्रणाली)

द्विभाषी शिक्षा प्रणाली भारत में बहुत आम है लगभग सभी शिक्षा बोर्ड दो भाषाओं में शिक्षा देते हैं। इसके वावजूद हिन्दी माध्यम से पढ़ कर आये हुए विद्यार्थियों को कॉलेज में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसका अर्थ यह है की कहीं तो समस्या है द्विभाषी शिक्षा प्रणाली में कहीं तो कुछ गलत हो रहा है जिसका खामियाजा हमारे देश के युवाओं को भुगतना पड़ रहा है।
मैं इस समस्या की जड़ तक पहुँचने तथा उसे मिटाने का प्रयत्न कर रहा हूँ, मेरा शोध का विषय यही है। इसी विषय के अंतर्गत मुझे एक पोस्टर तैयार करना था जिसके जरिये लोग द्विभाषी शिक्षा प्रणाली के बारे में थोड़ी से जानकारी हासिल कर पायें। मैंने यह पोस्टर तैयार किया है, इस पोस्टर में चार बिन्दु हैं-
  1. क्या है द्विभाषी शिक्षा प्रणाली
  2. द्विभाषी शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य क्या है
  3. कैसे दे सकते हैं द्विभाषी शिक्षा तथा 
  4. द्विभाषी शिक्षा प्रणाली की कौन-कौन सी पद्धति हैं
नीचे पोस्टर दे रहा हूँ, इसको बनाने में छह घंटे का समय लगा तथा मैंने इंकस्केप सोफ्टवेयर का प्रयोग करते हुए इसे बनाया है-
Bilingual Education Poster by +yogendra pal  @TechFest2013 +IIT Bombay 

अगर आपको यह पोस्टर प्रिंट करवा कर अपने स्कूल अथवा कॉलेज में लगवाना है तो मुझे कमेन्ट में लिखिए मैं आपको हाई-रिजोल्यूशन फॉर्मेट दे दूंगा। बताइये मेरा पोस्टर कैसा लगा?

04 जनवरी 2013

शिक्षा प्रौद्यौगिकी (Educational Technology)

शिक्षा प्रौद्यौगिकी यानी एजुकेशनल टेक्नोलोजी यूं तो एक बहुत पुराना क्षेत्र है पर भारत में इस क्षेत्र में अभी तक उतना काम नहीं हुआ है जितना होना चाहिए था। इस लेख में मैं आपको इस क्षेत्र के बारे में बताऊंगा।

क्या है शिक्षा प्रौद्यौगिकी (एजुकेशनल टेक्नोलोजी)?
जैसा के नाम से ही स्पष्ट है कि टेक्नोलोजी का शिक्षा में प्रयोग एजुकेशनल टेक्नोलोजी कहलाता है। यह कोई नया विषय नहीं है पुरातन काल से ही हर समय की नई टेक्नोलोजी को पढने-पढ़ाने के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा है। लिखने के लिए पत्थर के इस्तेमाल से बढ़ते बढ़ते आज हम आवाज के प्रयोग तक आ चुके हैं, जहाँ हम जो भी बोल दें वह कम्प्युटर लिख देता है। यह एजुकेशनल टेक्नोलोजी  का ही परिणाम है।

शिक्षा की जरूरत तथा शिक्षा की समस्या को हल करने के लिए आधुनिक टेक्नोलोजी का प्रयोग करते हुए नए टूल (औजार) तथा तरीके विकसित करना  एजुकेशनल टेक्नोलोजी के अंतर्गत आता है।

दिनों दिन भारत में नई-पुरानी कम्पनियाँ अलग-अलग किस्म के एजुकेशनल टेक्नोलोजी से सम्बंधित प्रोजेक्ट प्रारभ कर रहीं हैं। कोई कंटेंट बनाने के लिए टूल बना रही है, कोई कोर्स रन करने के लिए, कोई टेस्ट लेने के लिए सिस्टम बना रही है तो कोई इन सभी चीजों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए।

आई आई टी मुम्बई में इस दिशा में काफी कुछ हो रहा है, मैं खुद आई आई टी मुम्बई से शिक्षा प्रौद्योगिकी में पी एच डी कर रहा हूँ। आई आई टी के इस दिशा में हो रहे प्रयास आपको कुछ दिनों में अपने लेख में बताऊंगा।

03 जनवरी 2013

एक अध्यापक के लिए वेब २.० वेबसाइट

बहुत बात हो चुकी है इस बारे में कि एक वेब २.० वेबसाइट में क्या क्या होता है अब बात करते हैं कि यदि एक अध्यापक के लिए वेब २.० प्रौद्यौगिकी पर आधारित वेबसाइट बनानी हो तो उसमें क्या क्या होना चाहिए|

  • कंटेंट लिखने की सुविधा: एक अध्यापक सामान्यता वह भाषा  (HTML) नहीं जानता जिसकी सहायता से वह वेबसाइट पर लेख लिख सके इसलिए एक ऐसा टेक्स्ट एडिटर अध्यापक को मिलना चाहिए जिसकी सहायता से अध्यापक को अपने लेखों को फॉर्मेट करने में असुविधा ना हो|
  • ब्लॉग: ब्लॉग अध्यापक को वह सुविधा देगा जहां पर अध्यापक अपने विद्यार्थियों से सीधा संपर्क बना सकता है, यहाँ पर वह समय के अनुसार लेख लिख सकता हैं जैसे कि परीक्षा आने पर परीक्षा में कैसे लिखा जाए, छुट्टियों में क्या-क्या किया जाये, प्रोजेक्ट के नये-नये आइडिया इत्यादि|
  • कमेन्ट सिस्टम: ब्लॉग में तथा वेबसाइट के अन्य कंटेंट पर कमेन्ट की सुविधा होना अनिवार्य है जिससे आपको यह भी पता लगे कि आपके विद्यार्थी आपके लेखों के बारे में क्या विचार रखते हैं, क्या-क्या जानना चाहते हैं| विद्यार्थियों के विचारों को जानकार आप अपने आगे के लेखों के बारे में विचार कर सकते हैं|
  • पॉडकास्ट एम्बेड करने की सुविधा: जैसा कि पिछले लेख में बताया जा चुका है डिजिटल मीडिया को पॉडकास्ट कहा जाता है, आप वीडियो बना सकते हैं जिसे आप वीडियो शेयरिंग साइट जैसे कि यू-ट्यूब, वीमियो, ब्लिप.टी.वी. इत्यादि पर रख सकते हैं और उसके बाद उनको अपनी वेबसाइट पर एम्बेड कर सकते हैं| इसी प्रकार आप ऑडियो शेयरिंग साइट का प्रयोग करते हुए अपने ऑडियो पॉडकास्ट को किसी और साइट पर अपलोड करके उसको अपनी साइट पर एम्बेड कर सकते हैं अथवा उसका लिंक अपने विद्यार्थियों को दे सकते हैं| अपने डोक्यूमेंट को शेयर करने के लिए आप डोक्यूमेंट शेयरिंग साइट जैसे कि स्लाइडशेयर का प्रयोग कर सकते हैं| सामान्यता सभी पॉडकास्ट शेयरिंग वेबसाइट आपके कंटेट को एम्बेड करने की सुविधा प्रदान करतीं हैं|
  • टैग: मान लीजिए कि आप किसी एक बिषय पर कई पेज, ब्लॉग, वीडियो, ऑडियो इत्यादि अपनी वेबसाइट पर लिख चुके हैं, अब आप अथवा आपके विद्यार्थी इन सभी चीजों को एक ही साथ देखना चाहते हैं तो कैसे देखेंगे? टैग आपको यही सुविधा प्रदान करता है| टैग के जरिये आप अपने पूरे कंटेट को वर्गीकृत कर सकते हैं|
  • सिग्नल: किसी भी प्रकार की फीड की सुविधा आपकी वेबसाइट में होनी चाहिए जिससे आपकी वेबसाइट के अपडेट होने पर तमाम वेब एप्लीकेशन को आपकी वेबसाइट के अपडेट होने के बारे में पता चल जाए| ऐसी कई एप्लीकेशन हैं जिनका उपयोग विद्यार्थी फीड सब्सक्राइब करने के लिए करते हैं जैसे ही आपकी वेबसाइट पर नया कंटेंट जोड़ा जाएगा विद्यार्थी को अपनी एप्लीकेशन पर पता चल जाएगा और वह तुरंत ही आपके नये लेख को पढ़ लेगा| यदि फीड हर टैग के लिए उपलब्ध हो तब तो कहना ही क्या, इस स्थिती में आपके पाठकों की संख्या में काफी इजाफा होने की सम्भावना है|
  • सोशल बुकमार्किंग: जिससे आपके विद्यार्थी आपके लेखों को दूसरे विद्यार्थियों के साथ सोशल नेट्वर्किंग वेबसाइट पर शेयर कर सकें|


यह एक अध्यापक की वेबसाइट में होने वाले कुछ प्रमुख गुण हैं, पर जरूरत के हिसाब से इनमें इजाफा हो सकता हैं जैसे कि पब्लिकेशन का लिंक, विकी, टेस्ट लेने की सुविधा, यह लिस्ट जरूरत के हिसाब से काफी लंबी हो सकती है|

वेबसाइट पर आने वाले खर्चा:
वेबसाइट बनाने में मुख्य रूप से चार चीजों पर खर्चा करना पड़ता है-
  1. डोमेन नेम- यह सालाना खर्चा है आपको अपने लिए डोमेन नेम प्रतिबर्ष खरीदना होता है|
  2. होस्टिंग- यह वह जगह होती है जहां पर आपके बेबसाइट की फाइलें रखीं जाती हैं, यह अलग-अलग होस्टिंग सर्विस देने बाली कंपनी पर निर्भर करता है सामान्यता 1 GB स्पेस के लिए 500-1200 रुपये तक प्रतिबर्ष देने पड़ते हैं|
  3. वेबसाइट डेवलेपमेंट- वेबसाइट बनाने की प्रक्रिया को वेबसाइट डेवलेपमेंट कहा जाता है, इसमें आपकी वेबसाइट में आपके जरूरत के अनुसार बनाया जाएगा, यह एक बार लिया जाता है तथा जब भी आप कोई नया फीचर जोड़ना चाहें तब लिया जाता है|
  4. वेबसाइट मेंटेनेंस- यह किसी भी वेबसाइट के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसमें समय-समय पर वेबसाइट में आने बाली दिक्कतों को दूर करना, वेबसाइट का बैकअप लेना इत्यादि शामिल होता है|
मुख्य रूप से वेबसाईट बनाने में आने वाला खर्च आपकी जरूरत पर निर्भर करता है, पर यदि एक सामान्य वेबसाइट की बात करें तो डोमेन नेम तथा वेब-स्पेस लेने के बाद कोई वेब-डिजानर 8000-25000 रु. में आपके लिए यह वेबसाइट बना देगा फिर आगे आपकी जरूरतों के हिसाब से इसमें इजाफा हो सकता है|

अपने एक मित्र के लिए मैंने एक ऐसी वेबसाइट बनाई है आप http://rkthenua.in पर देख सकते हैं| यदि आप अपने लिए एक ऐसी वेबसाइट चाहते हैं तो मुझे संपर्क करें yogendra.pal3@gmail.com पर इसमें आपको सालाना 7000/- के लगभग खर्चा आएगा|

01 जनवरी 2013

वेब २.० तथा शिक्षक

जैसा कि इस पोस्ट के शीर्षक से स्पष्ट है, इस पोस्ट में मैं बात करूँगा कि कैसे एक शिक्षक वेब २.० का प्रयोग विद्यार्थियों को पढाने के लिए कर सकते हैं

सबसे पहले यह पता होना चाहिए कि वेब २.० क्या है? 
वेब प्रौद्यौगिकी को आये हुए तो काफी समय हो चुका है पर अपनी शुरूआती अवस्था में जो वेबसाइट्स बनीं वो स्टेटिक थीं, स्टेटिक का हिन्दी में अर्थ होता है स्थिर, इस तरह की वेबसाइट में वेबसाइट बनाने वाला जो अपने पेज पर लिख देता था उसको पढ़ने वाला पूरी दुनिया में इंटरनेट की सहायता से कहीं भी पढ़ सकता था, यह ठीक वैसा ही था जैसे हम किसी पुस्तक को पढ़ते हैं

जब हम पुस्तक को पढ़ते हैं तो हम उस पुस्तक में लिखी किसी बात से सहमत हो सकते हैं, किसी बात से असहमत, हमें कुछ सवाल भी सूझ सकते हैं और लेखक से उनके उत्तर को जानने की इच्छा हो सकती है, पर हम कैसे पूछें? किताब हमें इस तरह की कोई सुविधा नहीं देती ठीक ऐसा ही स्टेटिक वेबसाइट्स में भी होता है आप पढ़ सकते हैं पर लेखक से संपर्क नहीं कर सकते यानि ना ही अपने सवाल पूछ सकते हैं और ना ही अपनी सहमति अथवा असहमति दर्ज करा सकते हैं

वेब २.० शब्द का प्रयोग 1999 में प्रथम बार उन वेबसाइट्स के लिए किया गया था जो ऐसी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करती हैं जो वेबसाइट में स्टेटिक पेज से कुछ ज्यादा प्रयोग करने की सुविधा प्रदान करती हैं एक वेब २.० प्रौद्यौगिकी पर आधारित वेबसाइट अपने प्रयोगकर्ताओं को आपस में बातचीत तथा सहयोग करने का मौक़ा प्रदान करती है, ऐसी वेबसाइट में प्रयोगकर्ता खुद एक लेखक हो सकता है सोशल नेट्वर्किंग साइट्स, ब्लॉग, विकीपीडिया, वीडियो शेयरिंग वेबसाइट, होस्टेड सर्विस, वेब एप्लीकेशन इत्यादि वेब २.० प्रौद्यौगिकी पर आधारित वेबसाइट के उदाहरण हैं

शिक्षकों के लिए वेब २.०-
वेब २.० शिक्षकों को पढाने के नये रास्ते दिखाती है सामान्यतया एक शिक्षक एक बार में बहुत कम लोगों को पढ़ा सकता है पर वेब २.० का प्रयोग करते हुए शिक्षक पूरी दुनिया में कहीं भी स्थित अनगनित विद्यार्थियों को पढ़ा सकता है और अपनी पहचान पूरी दुनिया में बना सकता है

वेब २.० प्रौद्यौगिकी का प्रयोग करके बनाईं हुईं वेबसाइट में निम्न सुविधाएं हो सकती हैं,

खोजने की क्षमता: एक वेबसाइट में काफी डाटा हो सकता है, पर यदि खोजने की क्षमता ना हो तो आपकी वेबसाइट के पाठकों को उनकी जरूरत की सामग्री खोजने में काफी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए खोज करने की क्षमता किसी शिक्षक की वेबसाइट का एक महत्वपूर्ण अंग है

लिंक्स: लिंक्स तो वेबसाइट की जान होती हैं, लिंक्स का प्रयोग कई प्रकार से एक वेबसाइट पर किया जा सकता है| मुख्य रूप से लिंक दो प्रकार के होते हैं एक तो वो जो प्रयोगकर्ता को वेबसाइट से बाहर ले जाते हैं, यानि कि वो लिंक जो पाठक को और अधिक जानकारी देने वाली वेबसाइट पर ले जाते हैं, और दूसरे वो जो पाठक को इसी वेबसाइट पर रखते हैं, इनका प्रयोग एक पेज से दूसरे पेज पर ले जाने के लिए अथवा उसी पेज पर किसी एक टॉपिक से दूसरे टॉपिक पर ले जाने के लिए किया जाता है|

टैग: टैग का प्रयोग वर्गीकरण के लिए किया जाता है, यह वर्गीकरण किसी भी आधार पर हो सकता है जैसे कि विषय, अध्याय, आयु वर्ग, कक्षा, शिक्षक इत्यादि

एक्सटेंशन: एक्सटेंशन का अर्थ होता है किसी चीज को बढ़ा देना, वेबसाइट को एक एप्लीकेशन (सॉफ्टवेयर) का रूप देना एक्सटेंशन कहलाता है| जैसे कि एडोब रीडर, एडोब फ्लैश प्लेयर, माइक्रोसोफ्ट सिल्वरलाइट एक्टिव-एक्स, जावा, क्विक-टाइम, विंडोज मीडिया इत्यादि


सिग्नल: सिग्नल का अर्थ है सिंडिकेशन का प्रयोग करना, इसमें आर.एस.एस. तथा इसी प्रकार की फीड का प्रयोग करते हुए एक वेबसाइट दूसरी वेबसाइट अथवा एप्लीकेशन को बताती है कि वेबसाइट में नया कंटेंट जोड़ा गया है



सोशल वेब क्या है?
यह तो हुईं वह सुविधाएँ जो कि आपको वेब २.० का प्रयोग करने वाली वेबसाइट पर मिल जायेंगी, अब बात करते हैं सोशल वेब की जो वेब २.० का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। सोशल वेब का प्रयोग करते हुए प्रयोगकर्ता अपना नजरिया, राय, विचार तथा अनुभव ऑनलाइन टूल तथा ऑनलाइन प्लेटफोर्म का प्रयोग करते हुए करता है एक अध्यापक वेब २.० का प्रयोग विद्यार्थियों को पढाने के लिए कर सकता है



ब्लोगिंग: ब्लोगिंग का अर्थ होता है ऑनलाइन डायरी, ब्लॉग का प्रयोग करते हुए आप अपने लेख अपने विद्यार्थियों तक पहुंचा सकते हैं



विकी: विकी का अर्थ एक ऐसी वेबसाइट से होता हैं जहां पर हर किसी को कंटेंट लिखने की आजादी होती है, विकी पर ना सिर्फ अध्यापक बल्कि विद्यार्थी भी बदलाब कर सकता है, विकी को आप चाहें तो अपने स्कूल, क्लास अथवा कोचिंग के लिए बना सकते हैं



पॉडकास्ट: कम्प्यूटर के युग में पढ़ना-पढ़ाना सिर्फ लेखों तक ही सीमित नहीं है, आप पढाने के लिए ऑडियो, वीडियो, पी.डी.एफ. या इसी प्रकार के डिजिटल मीडिया का प्रयोग कर सकते हैं इन पॉडकास्ट को आप अपनी वेबसाइट पर रख सकते हैं अथवा किसी वीडियो शेयरिंग साइट, ऑडियो शेयरिंग साइट, स्लाइड तथा डोक्यूमेंट शेयरिंग साईट पर अपलोड करने के बाद उनको अपनी वेबसाइट पर अटैच कर सकते हैं



सोशल नेट्वर्किंग साइट: आजकल के विद्यार्थी फेसबुक जैसी सोशल नेट्वर्किंग साइट का बहुत प्रयोग करते हैं, इसलिए इस तरह की वेबसाइट पर विद्यार्थियों को पढाने पर उनको ज्यादा पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है



सोशल बुकमार्किंग: बुकमार्क का अर्थ होता है चिन्हित कर देना, सामान्यतया हम उन चीजों को चिन्हित करते हैं जो हमको पसंद आतीं हैं ठीक इसी प्रकार सोशल बुकमार्किंग आपके पाठकों को उनकी पसंद के वेब-पेज को तमाम सोशल नेट्वर्किंग साइट पर शेयर करने की सुविधा करती है

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